चाँद, सूरज और प्रथ्वी
सब फसे है एक चक्कर में
जैसे रिश्तेदार हों एकदूसरे के
सूरज रोज़ निहारता है
प्रथ्वी को
प्रथ्वी रोज निहारती है
चाँद को,
सब बतियाते है
एक दूसरे से
दूर से- पास से
आए दिन ये
एक सीध में पकड़े जाते है
लोग इहे बदनाम करते है
सूर्यग्रहण-चंद्र्ग्रहण के नाम से,
किस्से कहानियाँ बन जाते है
ज्योतिसियों के लिए,
जिन्हे झेलती है प्रथ्वी.
पर कभी प्रथ्वी को
ग्रहन क्यो नही लगता.
लगता होगा
सूरज के घर
चाँद के घर
प्रथ्वीग्रहण...
4 comments:
apne apne ghar apne apne grahan
बहुत बढिया !
पर कभी पृथ्वी को
ग्रहण क्यों नही लगता।
वाह. क्या काल्पनिक दृष्टिकोण है ।
Dosti achi ho tu rang lati hai,
Dosti gehri ho tu sabki bhati hai,
Dosti nadan ho tu toot jati hay,
Per dost hamse ho tu itihass ban jati hai.
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