परदा बहुत कुछ कहता है,
परदा कई रूप धरता है,
कभी पर्दा मुखोटा बन जाता है,
कभी आवरण,
शरहद की लाइनें भी परदा है,
परदे के बहुत मायने है,
परदा मर्यादा है,
परदा वादा है,
परदा संजोता है
धरोहर अपने आप में.
पर शब्द परदा नही है
परदा ही शब्दों का रूप धरता है
और कहता है रोज़
कुछ अनकही सी...
कुछ अनकही सी...Kuch Ankahi Si...
कुछ अनकहा सा बहुत कुछ कह जाता हैं बिना शब्दों के...
31 August 2007
30 August 2007
प्रथ्वीग्रहण
चाँद, सूरज और प्रथ्वी
सब फसे है एक चक्कर में
जैसे रिश्तेदार हों एकदूसरे के
सूरज रोज़ निहारता है
प्रथ्वी को
प्रथ्वी रोज निहारती है
चाँद को,
सब बतियाते है
एक दूसरे से
दूर से- पास से
आए दिन ये
एक सीध में पकड़े जाते है
लोग इहे बदनाम करते है
सूर्यग्रहण-चंद्र्ग्रहण के नाम से,
किस्से कहानियाँ बन जाते है
ज्योतिसियों के लिए,
जिन्हे झेलती है प्रथ्वी.
पर कभी प्रथ्वी को
ग्रहन क्यो नही लगता.
लगता होगा
सूरज के घर
चाँद के घर
प्रथ्वीग्रहण...
सब फसे है एक चक्कर में
जैसे रिश्तेदार हों एकदूसरे के
सूरज रोज़ निहारता है
प्रथ्वी को
प्रथ्वी रोज निहारती है
चाँद को,
सब बतियाते है
एक दूसरे से
दूर से- पास से
आए दिन ये
एक सीध में पकड़े जाते है
लोग इहे बदनाम करते है
सूर्यग्रहण-चंद्र्ग्रहण के नाम से,
किस्से कहानियाँ बन जाते है
ज्योतिसियों के लिए,
जिन्हे झेलती है प्रथ्वी.
पर कभी प्रथ्वी को
ग्रहन क्यो नही लगता.
लगता होगा
सूरज के घर
चाँद के घर
प्रथ्वीग्रहण...
17 August 2007
तस्वीर
चित्रकार जब देखता हैं
सुने से कैनवास को
तो उडेल देता हैं
रंग सारे
अपनी पेलेट के
और बना देता हैं
एक तस्वीर,
अपने अन्दर की
अपने बाहर की ,
जो कितनी खूबसूरत
दिखाती हैं
सतरंगी सी
एक हैं ये लिखने वाले
जो मन की
एक सियाही से
लिखते हैं,
अपने अन्दर की
अपने बाहर की
और खीच देते हैं
सिर्फ शब्दों से
एक तस्वीर
कुछ कही सी
कुछ अनकही सी
सुने से कैनवास को
तो उडेल देता हैं
रंग सारे
अपनी पेलेट के
और बना देता हैं
एक तस्वीर,
अपने अन्दर की
अपने बाहर की ,
जो कितनी खूबसूरत
दिखाती हैं
सतरंगी सी
एक हैं ये लिखने वाले
जो मन की
एक सियाही से
लिखते हैं,
अपने अन्दर की
अपने बाहर की
और खीच देते हैं
सिर्फ शब्दों से
एक तस्वीर
कुछ कही सी
कुछ अनकही सी
09 August 2007
रंगीन पानी
पानी इतना आम हैं
कि इसका कोई नाम नहीं,
ये ज़रूरत हैं हर किसी की
हर दिन,
पर जब मिलता हैं
कुछ रंग इसमें
तो शक्ल बदल जाती हैं,
ये बेनाम नही रहता।
जब ये अन्दर जाता हैं
तो बाहर आता हैं
ऐसा-ऐसा
जो कह नही पाते
साफ पानी पीकर।
सारी घुटन
सब जान जाते हैं।
ये रंगीन पानी
सब कह जाते हैं
मन की,
जो थी अब तक
कुछ अनकही सी...
कि इसका कोई नाम नहीं,
ये ज़रूरत हैं हर किसी की
हर दिन,
पर जब मिलता हैं
कुछ रंग इसमें
तो शक्ल बदल जाती हैं,
ये बेनाम नही रहता।
जब ये अन्दर जाता हैं
तो बाहर आता हैं
ऐसा-ऐसा
जो कह नही पाते
साफ पानी पीकर।
सारी घुटन
सब जान जाते हैं।
ये रंगीन पानी
सब कह जाते हैं
मन की,
जो थी अब तक
कुछ अनकही सी...
02 August 2007
किश्तियों के वो कागज़
वो जो कान मे पडती थी
बूंदों की टपटप
और आँख खुलती थी
तो लगता था
टीन पे बूंदे नही पड रही
क़ोई नाच रहा है.
सावन ने घुँघरू बाँधे है
पावों मे,
दीवारो से जब रिसता था
वो पानी
तो महक उठता था
सारा आलम सोंधी खुशबू से
और वो कच्ची मिट्टी को
छूती थी जो बूंदे
तो खडे हो जाते थे
खरपतवार,
वो खरपतवार एसे लगते थे
जैस एक घना जंगल,
केचुए जैसे एनाकोन्डा,
चीटे-चीटी जैसे जंगली जानवर,
मन्डराते कीडेमकोडे
जैसे पंक्षी हो बड़े बड़े.
बडे होने पे
आज देखता हू
उन बूंदो को
इस महानगर मे,
शान्त सी चली आती है
और चली जाती है
नालियो मे बह,
और किश्तियों के वो कागज़
अपना दम तोड देते है
स्कूल के बस्तो मे...
बूंदों की टपटप
और आँख खुलती थी
तो लगता था
टीन पे बूंदे नही पड रही
क़ोई नाच रहा है.
सावन ने घुँघरू बाँधे है
पावों मे,
दीवारो से जब रिसता था
वो पानी
तो महक उठता था
सारा आलम सोंधी खुशबू से
और वो कच्ची मिट्टी को
छूती थी जो बूंदे
तो खडे हो जाते थे
खरपतवार,
वो खरपतवार एसे लगते थे
जैस एक घना जंगल,
केचुए जैसे एनाकोन्डा,
चीटे-चीटी जैसे जंगली जानवर,
मन्डराते कीडेमकोडे
जैसे पंक्षी हो बड़े बड़े.
बडे होने पे
आज देखता हू
उन बूंदो को
इस महानगर मे,
शान्त सी चली आती है
और चली जाती है
नालियो मे बह,
और किश्तियों के वो कागज़
अपना दम तोड देते है
स्कूल के बस्तो मे...
06 July 2007
चाह
चाह की कोई सीमा नहीं होती,
चाहते कितनी भी हो सकती हैं।
मन जब मचलता हैं
तो चाहतें जन्म लेती हैं,
पर सच्ची चाहत का जन्म
बिना शर्त होता हैं,
किसी की कमियों को
साथ लिए
उसे चाहना ही
सच्चा प्यार हैं।
ज़िन्दगी एक बार
मिलती हैं,
अपने खेल खेलती हैं,
हर रोज़ नयी कहानी
जन्म लेती हैं,
इसमें कोई भी
मन सा कभी भी
मिल सकता हैं,
और कभी मन सा
बनाना पड़ता हैं।
सच्ची चाहत को
बयाँ करना आसान नही हैं,
आसान हैं उसे महसूस करना
ग़र ज़िंदगी देती हैं ये मौका।
कभी लंबे साथ भी अधूरे रहते हैं
कभी कुछ पल के साथ हमेशा रहते हैं...
चाहते कितनी भी हो सकती हैं।
मन जब मचलता हैं
तो चाहतें जन्म लेती हैं,
पर सच्ची चाहत का जन्म
बिना शर्त होता हैं,
किसी की कमियों को
साथ लिए
उसे चाहना ही
सच्चा प्यार हैं।
ज़िन्दगी एक बार
मिलती हैं,
अपने खेल खेलती हैं,
हर रोज़ नयी कहानी
जन्म लेती हैं,
इसमें कोई भी
मन सा कभी भी
मिल सकता हैं,
और कभी मन सा
बनाना पड़ता हैं।
सच्ची चाहत को
बयाँ करना आसान नही हैं,
आसान हैं उसे महसूस करना
ग़र ज़िंदगी देती हैं ये मौका।
कभी लंबे साथ भी अधूरे रहते हैं
कभी कुछ पल के साथ हमेशा रहते हैं...
18 June 2007
सांझे गम
कूलर पानी लेता हैं
ठंडक देता हैं,
AC पानी छोड़ता हैं
ठंडक देता हैं,
दोनो का ही काम
ठंडक देना हैं
एक का लेकर;
दूसरे का देकर;
'पानी'
गम भी कुछ
इसी तरह हैं,
कुछ गम लेने से
ठंडक मिलती हैं
कुछ बांटने से।
दोनो ही सूरत
सुकून देती हैं
यही होते हैं
"सांझे गम"
ठंडक देता हैं,
AC पानी छोड़ता हैं
ठंडक देता हैं,
दोनो का ही काम
ठंडक देना हैं
एक का लेकर;
दूसरे का देकर;
'पानी'
गम भी कुछ
इसी तरह हैं,
कुछ गम लेने से
ठंडक मिलती हैं
कुछ बांटने से।
दोनो ही सूरत
सुकून देती हैं
यही होते हैं
"सांझे गम"
11 June 2007
पहेली
ज़िंदगी कहते हैं तू पहेली हैं,
वक़्त की आंख मिचोली हैं।
हरेक दिन रचती हैं नये खेल,
फिर भी सुख दुःख की सहेली हैं।
रोज़ होती हैं तू परत दर परत पुरानी,
फिर भी लगती तू नयी नवेली हैं।
कितने वाकये जुडते हैं इसमें नए,
फिर भी यादों की तू हवेली हैं।
ज़िंदगी कहते हैं तू पहेली हैं...
2004
वक़्त की आंख मिचोली हैं।
हरेक दिन रचती हैं नये खेल,
फिर भी सुख दुःख की सहेली हैं।
रोज़ होती हैं तू परत दर परत पुरानी,
फिर भी लगती तू नयी नवेली हैं।
कितने वाकये जुडते हैं इसमें नए,
फिर भी यादों की तू हवेली हैं।
ज़िंदगी कहते हैं तू पहेली हैं...
2004
02 June 2007
आओ कुछ रंग बांटे
शब्दों मै भी तो रंग होते हैं,
या कहें हर शब्द एक रंग का नाम हैं,
तभी तो गीत, कहानी, ग़ज़ल, कविता
कितने रंग लिए होते हैं अपने आप में।
सभी रंग दिखाई नही देते;
महसूस भी किये जाते हैं,
सुख-दुःख, ख़ुशी-गम
और ना जाने कितने...
ये रंग ही तो हैं
जिनसे ज़िन्दगी चलती हैं,
ये ना हों
तो कुछ भी नहीं।
आओ रंग बांटे,
आओ संग बांटे,
खुशियाँ तो बहुत बाँटी हैं,
आओ कुछ गम बांटे...
10/03/2001
या कहें हर शब्द एक रंग का नाम हैं,
तभी तो गीत, कहानी, ग़ज़ल, कविता
कितने रंग लिए होते हैं अपने आप में।
सभी रंग दिखाई नही देते;
महसूस भी किये जाते हैं,
सुख-दुःख, ख़ुशी-गम
और ना जाने कितने...
ये रंग ही तो हैं
जिनसे ज़िन्दगी चलती हैं,
ये ना हों
तो कुछ भी नहीं।
आओ रंग बांटे,
आओ संग बांटे,
खुशियाँ तो बहुत बाँटी हैं,
आओ कुछ गम बांटे...
10/03/2001
30 May 2007
पार्टी टाइम
जरुरी है कि खुशियों के लिए
दिन देखा जाये,
जरुरी है क्या उस दिन का
इंतज़ार करना,
जब कुछ हुआ था।
क्यों ना हम उन तारीखों के
फ़ासलों को कुछ कम करलें,
जन्मदिन की पार्टी
किसी और दिन भी धरलें,
एक वक़्त से पहले,
एक वक़्त के बाद ...
13/6/2004
दिन देखा जाये,
जरुरी है क्या उस दिन का
इंतज़ार करना,
जब कुछ हुआ था।
क्यों ना हम उन तारीखों के
फ़ासलों को कुछ कम करलें,
जन्मदिन की पार्टी
किसी और दिन भी धरलें,
एक वक़्त से पहले,
एक वक़्त के बाद ...
13/6/2004
27 May 2007
फ़ासले
दूरियाँ और नजदीकियां
फ़ासलों के ही नाम है।
जब ये ज्यादा होता है
तो दूरियाँ बनता है,
और कम होता है
तो नजदीकियां।
ये फ़ासले भी कितने अजीब होते है
कहने को एक है,
पर रिश्ते दो - दो होते है।
March 2001
फ़ासलों के ही नाम है।
जब ये ज्यादा होता है
तो दूरियाँ बनता है,
और कम होता है
तो नजदीकियां।
ये फ़ासले भी कितने अजीब होते है
कहने को एक है,
पर रिश्ते दो - दो होते है।
March 2001
25 May 2007
सपना
रात फिर आयी
एक मीठी याद की तरह,
छेड़ गयी तारों को
जो उल्झाये थे संग किसी के।
आज हमने फिर एक सपना देखा।
२८-२-1995
एक मीठी याद की तरह,
छेड़ गयी तारों को
जो उल्झाये थे संग किसी के।
आज हमने फिर एक सपना देखा।
२८-२-1995
मेरी वो
तुम नहीं हो तो नाहोना सताता है,
तुम होती हो तो होना सताता है,
मै तुम्हें कितना सताता हूँ ये अलग बात है...
तुम होती हो तो होना सताता है,
मै तुम्हें कितना सताता हूँ ये अलग बात है...
24 May 2007
गुमनाम है कोई
कुछ रिश्तों के नाम होते है ,
पर वो हमेशा नाकाम होते है ।
पर वो हमेशा नाकाम होते है ।
कुछ रिश्ते रोज दिखते है,
पर उनमें देखने वाली कोई बात नही होती ।
और
कुछ रिश्ते दिखाई नही देते
पर वो हमेशा साथ होते है ।
काश कि सबको एक ऐसा रिश्ता मिले
जिसे नाम ना देना पडे
जो गुमनाम भी ना हो
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