31 August 2007

परदा

परदा बहुत कुछ कहता है,
परदा कई रूप धरता है,
कभी पर्दा मुखोटा बन जाता है,
कभी आवरण,
शरहद की लाइनें भी परदा है,
परदे के बहुत मायने है,
परदा मर्यादा है,
परदा वादा है,
परदा संजोता है
धरोहर अपने आप में.

पर शब्द परदा नही है
परदा ही शब्दों का रूप धरता है
और कहता है रोज़
कुछ अनकही सी...

30 August 2007

प्रथ्वीग्रहण

चाँद, सूरज और प्रथ्वी
सब फसे है एक चक्कर में
जैसे रिश्तेदार हों एकदूसरे के
सूरज रोज़ निहारता है
प्रथ्वी को
प्रथ्वी रोज निहारती है
चाँद को,
सब बतियाते है
एक दूसरे से
दूर से- पास से

आए दिन ये
एक सीध में पकड़े जाते है
लोग इहे बदनाम करते है
सूर्यग्रहण-चंद्र्ग्रहण के नाम से,
किस्से कहानियाँ बन जाते है
ज्योतिसियों के लिए,
जिन्हे झेलती है प्रथ्वी.

पर कभी प्रथ्वी को
ग्रहन क्यो नही लगता.
लगता होगा
सूरज के घर
चाँद के घर
प्रथ्वीग्रहण...

17 August 2007

तस्वीर

चित्रकार जब देखता हैं
सुने से कैनवास को
तो उडेल देता हैं
रंग सारे
अपनी पेलेट के
और बना देता हैं
एक तस्वीर,
अपने अन्दर की
अपने बाहर की ,
जो कितनी खूबसूरत
दिखाती हैं
सतरंगी सी

एक हैं ये लिखने वाले
जो मन की
एक सियाही से
लिखते हैं,
अपने अन्दर की
अपने बाहर की
और खीच देते हैं
सिर्फ शब्दों से
एक तस्वीर
कुछ कही सी
कुछ अनकही सी

09 August 2007

रंगीन पानी

पानी इतना आम हैं
कि इसका कोई नाम नहीं,
ये ज़रूरत हैं हर किसी की
हर दिन,
पर जब मिलता हैं
कुछ रंग इसमें
तो शक्ल बदल जाती हैं,
ये बेनाम नही रहता।
जब ये अन्दर जाता हैं
तो बाहर आता हैं
ऐसा-ऐसा
जो कह नही पाते
साफ पानी पीकर।
सारी घुटन
सब जान जाते हैं।
ये रंगीन पानी
सब कह जाते हैं
मन की,
जो थी अब तक
कुछ अनकही सी...

02 August 2007

किश्तियों के वो कागज़

वो जो कान मे पडती थी
बूंदों की टपटप
और आँख खुलती थी
तो लगता था
टीन पे बूंदे नही पड रही
क़ोई नाच रहा है.
सावन ने घुँघरू बाँधे है
पावों मे,

दीवारो से जब रिसता था
वो पानी
तो महक उठता था
सारा आलम सोंधी खुशबू से
और वो कच्ची मिट्टी को
छूती थी जो बूंदे
तो खडे हो जाते थे
खरपतवार,
वो खरपतवार एसे लगते थे
जैस एक घना जंगल,
केचुए जैसे एनाकोन्डा,
चीटे-चीटी जैसे जंगली जानवर,
मन्डराते कीडेमकोडे
जैसे पंक्षी हो बड़े बड़े.

बडे होने पे
आज देखता हू
उन बूंदो को
इस महानगर मे,
शान्त सी चली आती है
और चली जाती है
नालियो मे बह,
और किश्तियों के वो कागज़
अपना दम तोड देते है
स्कूल के बस्तो मे...

06 July 2007

चाह

चाह की कोई सीमा नहीं होती,
चाहते कितनी भी हो सकती हैं।
मन जब मचलता हैं
तो चाहतें जन्म लेती हैं,
पर सच्ची चाहत का जन्म
बिना शर्त होता हैं,
किसी की कमियों को
साथ लिए
उसे चाहना ही
सच्चा प्यार हैं।

ज़िन्दगी एक बार
मिलती हैं,
अपने खेल खेलती हैं,
हर रोज़ नयी कहानी
जन्म लेती हैं,
इसमें कोई भी
मन सा कभी भी
मिल सकता हैं,
और कभी मन सा
बनाना पड़ता हैं।

सच्ची चाहत को
बयाँ करना आसान नही हैं,
आसान हैं उसे महसूस करना
ग़र ज़िंदगी देती हैं ये मौका।

कभी लंबे साथ भी अधूरे रहते हैं
कभी कुछ पल के साथ हमेशा रहते हैं...

18 June 2007

सांझे गम

कूलर पानी लेता हैं
ठंडक देता हैं,
AC पानी छोड़ता हैं
ठंडक देता हैं,
दोनो का ही काम
ठंडक देना हैं
एक का लेकर;
दूसरे का देकर;
'पानी'

गम भी कुछ
इसी तरह हैं,
कुछ गम लेने से
ठंडक मिलती हैं
कुछ बांटने से।
दोनो ही सूरत
सुकून देती हैं
यही होते हैं
"सांझे गम"

11 June 2007

पहेली

ज़िंदगी कहते हैं तू पहेली हैं,
वक़्त की आंख मिचोली हैं।

हरेक दिन रचती हैं नये खेल,
फिर भी सुख दुःख की सहेली हैं।

रोज़ होती हैं तू परत दर परत पुरानी,
फिर भी लगती तू नयी नवेली हैं।

कितने वाकये जुडते हैं इसमें नए,
फिर भी यादों की तू हवेली हैं।

ज़िंदगी कहते हैं तू पहेली हैं...

2004

02 June 2007

आओ कुछ रंग बांटे

शब्दों मै भी तो रंग होते हैं,
या कहें हर शब्द एक रंग का नाम हैं,
तभी तो गीत, कहानी, ग़ज़ल, कविता
कितने रंग लिए होते हैं अपने आप में।

सभी रंग दिखाई नही देते;
महसूस भी किये जाते हैं,
सुख-दुःख, ख़ुशी-गम
और ना जाने कितने...

ये रंग ही तो हैं
जिनसे ज़िन्दगी चलती हैं,
ये ना हों
तो कुछ भी नहीं।

आओ रंग बांटे,
आओ संग बांटे,
खुशियाँ तो बहुत बाँटी हैं,
आओ कुछ गम बांटे...
10/03/2001

30 May 2007

पार्टी टाइम

जरुरी है कि खुशियों के लिए
दिन देखा जाये,
जरुरी है क्या उस दिन का
इंतज़ार करना,
जब कुछ हुआ था।
क्यों ना हम उन तारीखों के
फ़ासलों को कुछ कम करलें,
जन्मदिन की पार्टी
किसी और दिन भी धरलें,
एक वक़्त से पहले,
एक वक़्त के बाद ...

13/6/2004

27 May 2007

फ़ासले

दूरियाँ और नजदीकियां
फ़ासलों के ही नाम है।
जब ये ज्यादा होता है
तो दूरियाँ बनता है,
और कम होता है
तो नजदीकियां।
ये फ़ासले भी कितने अजीब होते है
कहने को एक है,
पर रिश्ते दो - दो होते है।
March 2001

25 May 2007

सपना

रात फिर आयी
एक
मीठी याद की तरह,
छेड़ गयी तारों को
जो उल्झाये थे संग किसी के।

आज हमने फिर एक सपना देखा

२८-२-1995

तुम

तुम खडे हो मेरे सामने
एक सवाल बनके,
मेरे सवाल का
जवाब बनके
जो मैंने अपने आप से किया था...
२७/2/1995

मेरी वो

तुम नहीं हो तो नाहोना सताता है,
तुम होती हो तो होना सताता है,

मै तुम्हें कितना सताता हूँ ये अलग बात है...

24 May 2007

गुमनाम है कोई

कुछ रिश्तों के नाम होते है ,
पर वो हमेशा नाकाम होते है ।
कुछ रिश्ते रोज दिखते है,
पर उनमें देखने वाली कोई बात नही होती ।
और
कुछ रिश्ते दिखाई नही देते
पर वो हमेशा साथ होते है ।
काश कि सबको एक ऐसा रिश्ता मिले
जिसे नाम ना देना पडे
जो गुमनाम भी ना हो